दूधिया रोशनी के बीच ¨हिंडोले में विराजमान ठा. बांकेबिहारी जी महाराज के अलभ्य दर्शन, सजल मेघ कांति लिए चमकते नुकीले नयन। हृदय को चीर देने वाले इन नयनों में गहराई और चमक ऐसी कि सागर भी समा जाये और आकाश भी। जो सामने आया, इनका हो गया, इनमें डूब गया।1हरे रंग की चांदी के बूटों से जड़ित पोशाक धारण कर विलक्षण श्रंगार, कसी हुई हरियाली पाग मोतियों से जड़ी, ऊपर टिपारा, सिरपेच, तुर्रा और कलंगी, सब कुछ अदभुत। हीरे और जवाहारात की चमक, मानो स्वयं कांति ने खुद को न्यौछावर करने की ठानी हो। कानों में कुंडल और मुरली की मुद्रा चित्त को आंदोलित कर रही थी और पीछे इकलाई में सिमटी हुई प्रियाजी। दोनों की अदभुत जोड़ी को अपलक निहारते निकट बैठे स्वामी हरिदास जी महाराज।
हिंडोले में झूले ठाकुर बांके बिहारी
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