संगीनों के साये में जन गण मन का उल्लास

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आज 26 जनवरी है यानि गणतंत्र दिवस। आज ही के दिन बाबा साहब आंबेडकर द्वारा अथक प्रयासों के बाद भारत के संविधान यानि जन गण मन को आज़ादी देने का संकल्प पत्र देश में लागू किया गया। देश के जन गण का मन प्रफुल्लित हुआ , उल्लास से भर उठा लेकिन आज देश के दूसरे सबसे अहम् पर्व को संगीनों के सायें में गुजारा जाना जन गण के मन को भयभीत करता है। आखिर वे क्या कारण रहे कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनशक्ति वाला देश , दूसरी सबसे बड़ी सक्रिय सेना वाला देश , दुनिया का सबसे बड़ा जन गणतंत्र आज इतना भयभीत है कि अपने उल्लास के पर्व को मनाने हेतु उसे संगीनों के साएं की आवश्यकता पड़ती है ? संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की आज़ादी आज देश के संविधान पर ही भारी पड़ रही है। देश के भीतर से उठ रही तमाम माँगों में संविधान का हनन करने वाली राष्ट्र गान और राष्ट्रीय गीत को स्वैच्छिक बनाने की माँग जन गण के मन को भीतर तक छील जाती है। देश की सरकारों , राजनीतिक दलों और तमाम सुधी जनता को चाहिए कि वे आज के दिन देश के जनतंत्र की भावना का सम्मान करने का प्रण करें और तय करें कि आगे से देश के सम्मान के आगे उनके निजी एवं राजनीतिक लाभ को कभी बीच में नहीं आने देंगे।

इसी भावना के साथ सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

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