देश के पूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हाराव की जिंदगी के कुछ अनछुए पहलू

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22 अप्रैल 2018 को मथुरा की आवाज़ डिजिटल मीडिया से प्रिंट मीडिया में कदम रखने जा रही है। आप सभी सुधि पाठकों का अपार सहयोग हमें यूँ ही हमेशा प्राप्त होता रहेगा इसी आशा के साथ अपने साप्ताहिक अखबार मथुरा की आवाज़ में हम अपने हर संस्करण में किसी एक राजनेता के अनछुए पहलुओं को आपके सामने लायेंगे।

#राजनीतिक_किरदारों की इसी कड़ी की शुरूआत करते हैं भारत के उस पहले गैर गाँधी परिवार से सम्बंधित प्रधानमंत्री की जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया। जिसको हम आधुनिक भारत में उदारवादी आर्थिक विचारों का जनक कह सकते हैं और जिसकी वजह से भारत में आर्थिक और औद्योगिक विकास क्रन्तिकारी रूप से आगे बढ़ा। जी हाँ , हम बात कर रहे हैं कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पामुलपर्ती वेंकट नरसिम्हाराव की। 28 जून 1921 को हैदराबाद में जन्मे नरसिम्हाराव ३० सितम्बर 1971 से 10 जनवरी 1973 तक आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। पार्टी के प्रति समर्पण और गाँधी परिवार के प्रति निष्ठा के कारण तत्कालीन कांग्रेसी आलाकमान ने उन्हें आंध्रा से दिल्ली बुला लिया। दिल्ली में उन्होंने इंदिरा गाँधी और राजीव गाँधी की सरकार में गृह मंत्रालय , रक्षा मंत्रालय और विदेश मंत्रालय जैसे अहम् विभागों को संभाला।

1991 में नरसिम्हाराव अपने रिटायरमेंट की तैयारी कर रहे थे इसीलिए उन्होंने 1991 का लोकसभा चुनाव भी नहीं लड़ा था। लेकिन इतिहास में एक ऐसी काली तारीख आई । 21 मई 1991 जब तमिलनाडु के श्री पेरुम्बुदुर में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की एक चुनावी रैली के दौरान हत्या कर दी गई। जिसके बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का ताज मिला पी वी नरसिम्हाराव को जो बाद में देश के प्रधानमंत्री भी बने। नरसिम्हाराव के कार्यकाल में 24 जुलाई 1991 को देश को लाइसेंस राज से मुक्ति मिली। उस समय नरसिम्हाराव के पास उद्योग मंत्रालय भी था और पी जे कुरियन उस समय उद्योग राज्य मंत्री थे। लेकिन नरसिम्हाराव ने नई औद्योगिक नीति को सदन में रखने का प्रस्ताव कुरियन के हवाले कर दिया इसीलिए इतिहास में उन्हें नेपथ्य का नरेश भी कहा जाता है। ये नरसिम्हाराव का ही नेतृत्व था कि ब्यूरो क्रैट से नेता बने मनमोहन सिंह को उन्होंने वित्त मंत्रालय जैसा अहंम विभाग दिया और फैसले लेने की आज़ादी भी।

नरसिम्हाराव के नाम एक और भी रिकॉर्ड है कि वे देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जोकि शपथ लेते वक़्त न लोकसभा के सदस्य थे और न राज्य सभा के। नरसिम्हाराव देश के पहले गैर गाँधी परिवार के प्रधानमंत्री भी बने जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। लेकिन ऐसे कर्मठ नेता की कहानी का दर्दनाक अंत हुआ । जब 23 दिसंबर 2004 को नरसिम्हा राव का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ तो तथाकथित रूप से कांग्रेस ने उनके साथ सौतेला व्यवहार किया। कांग्रेस पार्टी की एक परिपाटी थी कि पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष के निधन के बाद पार्थिव शरीर को कार्यकर्ताओं के दर्शन के लिए पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में रखा जाता था। लेकिन जब तिरंगे में लिपटा पी वी नरसिम्हाराव का पार्थिव शरीर निकला तो उसे कांग्रेस मुख्यालय नहीं लाया गया। कहा जाता है कि तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी ने ये सुनिश्चित किया कि नरसिम्हाराव के पार्थिव शरीर को कांग्रेस मुख्यालय न लाया जाये जबकि उनके बेटे प्रभाकर राव मीडिया से बार बार कहते रहे कि मेरे पिता की कर्मभूमि देश का दिल दिलली ही रही है। लेकिन नेपथ्य का ये नरेश जो कभी कांग्रेस पार्टी का महान रणनीतिकार रहा था , दिल्ली में दो गज जमीन भी न पा सका।

#mka

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