#राजनीतिक_किस्सों की आज की कड़ी में कहानी एक ऐसे नेता की जिसको उस संगठन ने बाहर का रास्ता दिखलाया जिसके वे संस्थापक सदस्य रहे थे , जिसके संविधान को लिखने में उन्होंने अहम् भूमिका निभाई थी। जी हाँ , हम बात कर रहे हैं तत्कालीन भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्य और राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे बलराज मधोक की। स्कर्दू (आज के पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर का हिस्सा ) में जन्मे बलराज मधोक ने 1951 में पंडित श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के साथ मिलकर संघ परिवार जोकि बाद में भारतीय जनसंघ बना , को बनाने में अहम् भूमिका अदा की। अप्रैल 1951 में पंडित श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने जहाँ बंगाल में जनसंघ की स्थापना की तो वही बलराज मधोक ने उसके एक माह बाद यानि मई 1951 में पंजाब और दिल्ली में जनसंघ की शाखाएँ स्थापित की। यही नहीं दिल्ली की जनसंघ शाखा के भंग हो जाने के बाद भी मधोक 1961 में दिल्ली से जनसंघ की टिकट पर लोकसभा का चुनाव जीतकर आये।
धीरे धीरे मधोक की संगठन में पकड़ मजबूत होती गई और 1966 – 1967 में मधोक जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और उनकी अध्यक्षता में 1967 के लोकसभा चुनाव में पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली और उसके 35 सांसद चुन कर आये। 1969 का वो दौर था जब कांग्रेस विभाजन की ओर जा रही थी , मधोक ने इसे एक अवसर के रूप में देखा जबकि पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्णा आडवाणी पार्टी में संघ की पृष्ठभूमि वाले नेताओं को तबज़्ज़ो देना चाहते थे। बलराज मधोक अपने निर्णय पर कायम रहे जिसकी वजह से पार्टी में वे अकेले पड़ते गए। 1973 में पार्टी के नए अध्यक्ष बने लाल कृष्ण आडवाणी ने बलराज मधोक को अनुशासन हीनता के आरोप में पार्टी से 3 साल के लिए निष्कासित कर दिया। जिसके बाद बलराज मधोक जनता पार्टी में गए जिसका बाद में जनसंघ में विलय हो जाने पर उन्होंने भारतीय जनसंघ के नाम से नई पार्टी भी बनाई।
बलराज मधोक ने अपने जीवन में करीब ढाई दर्जन किताबें लिखी। उन्होंने अपनी पुस्तक जिंदगी का सफर में अटल बिहारी वाजपेयी , लाल कृष्ण आडवाणी और नाना जी देश मुख जैसे वरिष्ठ जनसंघ के नेताओं पर पंडित दीन दयाल उपाध्याय की हत्या करवाने जैसे सनसनीखेज आरोप भी लगाए। हालाँकि ये सभी आरोप उन्होने पार्टी से निकाले जाने के बाद लगाये जिसकी वजह से इन पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया।