मथुरा : सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी है कि लाल किला 25 करोड़ में डालमिया ग्रुप को बेच दिया गया। विपक्षी इस पर तंज कस रहे हैं तो सत्ताधारी पक्ष इसके बचाव में है लेकिन आम जानता क्या जान समझ रही है ? आईये जानने की कोशिश करे कि राष्ट्रीय धरोहर , जहाँ से प्रति वर्ष स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देश के प्रधानमंत्री देश की जनता को सम्बोधित करते हैं क्या उसे मौजूदा सरकार ने वाक़ई नीलाम कर दिया है?
दरअसल भारत में ऐतिहासिक महत्व की हज़ारों छोटी बड़ी इमारते हैं जिनका रख रखाव केंद्र सरकार का एक छोटा सा महकमा भारतीय पुरातत्व विभाग (ए एस आई ) करता है। ए एस आई के पास सीमित संसाधन हैं और उसको मिलने वाला बजट भी बहुत कम है। इसी को मद्देनज़र रखते हुए तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे सचिन पायलट ने 27 फरबरी 2014 में इस योजना का खाका खींचा था जिसके तहत ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव को सी एस आर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी ) के अंतर्गत लाया गया । इसी योजना को बेहतर तरीके से लागू करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने “अडॉप्ट ए हेरिटेज “कार्यक्रम शुरू किया जिसके काफी समय बाद डालमिया ग्रुप ने इस योजना के तहत लाल किले को गोद लेने की स्वीकृति जाहिर की।
दरअसल निजी कंपनियों के भारत में कार्य करने के लिए कंपनी एक्ट बनाया गया है जिसके तहत सी एस आर (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी ) में कंपनियों को समाज के विकास हेतु लाभ का एक हिस्सा खर्च करना पड़ता है। अब चूँकि कांग्रेस सरकार सी एस आर में ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव को शामिल कर चुकी थी तो नरेंद्र मोदी सरकार ने निजी क्षेत्र की कंपनियों से “अडॉप्ट ए हेरिटेज “के तहत आगे आने का आग्रह किया।
अब सवाल , तो क्या डालमिया ग्रुप लाल किले का मालिक बन गया , जवाब है नहीं। लाल किले के रखरखाव के लिए एक समिति बनेगी जिसमे पुरातत्व विभाग के अधिकारीयों को भी शामिल किया जायेगा और कोई भी निर्णय डालमिया ग्रुप अपनी मर्जी से नहीं ले सकता। अलबत्ता तो रखरखाव में डालमिया ग्रुप को सार्वजनिक सुविधाओं के निर्माण के अलावा ढाँचे में बदलाव के कोई अधिकार भी नही दिए गए हैं जिस तरह से कांग्रेसी सरकार में दिल्ली की आगा खान संस्था को हुमायूँ के मकबरे के अंदर तक कार्य करने की अनुमति दे दी गई थी। हाँ डालमिया ग्रुप ए एस आई की सहमति से रखरखाव के खर्च को समाहित करने हेतु कुछ अतिरिक्त शो अथवा कार्यक्रम रखवा कर फण्ड जुटाने की कोशिश कर सकता है इसके अलावा विज्ञापन के रूप में भी ग्रुप को अच्छी ख़ासा पर्यटक वर्ग मिलेगा।
तो ये कहना की लाल किला बेच दिया गया है ये सरासर मिथ्या है। ऐतिहासिक धरोहरों का बेहतर रखरखाव को ऐसा सभी देशवासी चाहते है और अगर कोई निजी कंपनी इसे बेहतर तरीके से करना चाहती है तो इस पहल का स्वागत होना चाहिए।
लाल किले की नीलामी के दुष्प्रचार की वास्तविक हकीकत
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