कभी चार हज़ार का स्कूटर बेचकर चुनाव लड़े अशोक गहलोत तीसरी बार कैसे बने मुख्यमंत्री

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अशोक गहलोत दरअसल जादूगर हैं और हाथ की सफ़ाई में माहिर इस जादूगर के साथ क़िस्मत भी । अशोक गहलोत के पिता एक जादूगर थे और गहलोत भी अपनी पढ़ाई के दिनों में अपने पिता के साथ जाया करते थे और लोगों को नज़र का भ्रम यानि जादू दिखाया करते थे । महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित अशोक गहलोत गाँधीवादी बन गए । जहाँ एक सामाजिक कार्यक्रम में उस ऊर्जावान नौजवान पर इंदिरा जी की नज़र पड़ी । इंदिरा खुद को रोक न पाई और अशोक से बोली , तुम राजनीति क्यों नही जॉइन करते ? बस इसी के साथ अशोक गहलोत ने अपना रुख राजनीति की ओर कर लिया । जहाँ खुद के नेतृत्व में एक भी चुनाव न जीतने वाले इस जादूगर के हाथ मे तीसरी बार राजस्थान की सत्ता हाथ आई ।

राजस्थान की माली जाति से संबंध संबंध रखने वाले अशोक गहलोत को पहली बार जब कांग्रेस ने विधायक का उम्मीदवार बनाया तो उनके पास पैसे का कोई बंदोवस्त नही था । मजबूरन उन्हें अपना स्कूटर चार हज़ार रुपये में बेचना पड़ा । अशोक गांव गांव जाते, पोस्टर लगाते और लोगों से वोट माँगते । लेकिन अपने पहले चुनाव में गहलोत हार गए । लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी । जनता पार्टी में विभाजन के बाद दुबारा चुनाव हुए और इस बार अशोक गहलोत के सर विधायकी का ताज सजा ।

अशोक गहलोत के साथ मुख्यमंत्री बनने का वाकया भी बड़ा अजीबोगरीब है । हरदेव जोशी राजस्थान के मुख्यमंत्री थे और अशोक गहलोत कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष । जनवरी 1988 में सरिस्का उद्यान में केंद्र की मीटिंग रखी गई जिसको संबोधित करने खुद राजीव आने वाले थे । राजस्थान में उस साल अकाल पड़ा था ऐसे में मितव्ययता हेतु राजीव ने अपने सभी मंत्रियों और पदाधिकारियों से कहा कि वे सरकारी गाड़ी और अमले का इस्तेमाल न करें । राजीव स्वयं भी अपनी कार स्वयं चलाकर आये थे । एक चौराहे पर खड़े ट्रैफिक हवलदार ने राजीव की गाड़ी को मुड़ने का सिग्नल दिया और राजीव की कार सीधे वहाँ पहुँची जहां तमाम सरकारी गाडियां एक मैदान में पार्क की गई थी । राजीव माज़रा समझ गए और सभा को संबोधित किये बगैर दिल्ली लौट गए । कहा जाता है कि हवलदार को सिग्नल देने के लिए अशोक गहलोत ने ही कहा था । इसके अलावा हरदेव जोशी के राजीव गांधी की युवा तुर्क ब्रिगेड से पटरी भी ठीक नही बैठती थी । हरदेव जोशी के इंदिरा जी को लेकर किये के संबोधन की अखबारी कतरन और बूटा सिंह से हुई एक अनबन ने हरदेव जोशी के सियासी सफर पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया । 1988 में पहली बार मुख्यमंत्री बने फिर 2003 में वसुंधरा ने उनसे ये ताज छीन लिया । 2008 के चुनाव में सी पी जोशी को राजस्थान कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर भेजा गया और जोशी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने राजस्थान में सरकार बनाई किन्तु वे स्वयं एक वोट से हार गए । सत्ता एक बार फिर गहलोत को मिली और सी पी जोशी को केंद्र सरकार में मंत्री बना लिया गया ।

2018 में भी कुछ वैसा ही हुआ जब सचिन पायलट के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता के करीब तो आई लेकिन सत्ता की ताजपोशी एक बार फिर से गहलोत के सर हुई । कुछ यूँ ही सत्ता को मौन साधना नही कहा जाता ।

 

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